ठंड में ट्रैक्टर के नीचे सो रहे किसान! रीवा में धान खरीदी व्यवस्था ने तोड़ा अन्नदाताओं का सब्र

रीवा में धान खरीदी व्यवस्था फेल। ठंड में किसान ट्रैक्टर के नीचे सोने को मजबूर, 2 दिन से नहीं हो रही फसल की खरीद, बढ़ी परेशानियां।
 
Rewa
मध्य प्रदेश के रीवा जिले में धान खरीदी व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। कड़ाके की ठंड के बीच किसान अपनी उपज बेचने के लिए मजबूरन खरीद केंद्रों पर डटे हुए हैं। हालात इतने खराब हैं कि कई किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली के नीचे और खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं। दो-दो दिन बीत जाने के बाद भी किसानों की धान की खरीद नहीं हो पा रही, जिससे उनमें भारी नाराजगी देखी जा रही है।
खरीद केंद्रों पर अव्यवस्था, किसान बेहाल
रीवा जिले के कई धान उपार्जन केंद्रों पर न तो बैठने की उचित व्यवस्था है और न ही ठंड से बचाव के इंतजाम। किसान ट्रैक्टरों के नीचे अलाव जलाकर या प्लास्टिक शीट ओढ़कर रात काट रहे हैं। प्रशासन द्वारा किए गए दावों के विपरीत, ज़मीनी हकीकत बेहद चिंताजनक है।
किसानों का कहना है कि
टोकन सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा
कर्मचारियों की कमी के कारण खरीद की रफ्तार बेहद धीमी है
न तो शेड हैं और न ही पीने के पानी व शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं
दो दिन से लाइन में खड़े, फिर भी नहीं बिक रही फसल
कई किसानों ने बताया कि वे पिछले दो दिनों से अपनी ट्रैक्टर-ट्रॉली के साथ लाइन में खड़े हैं, लेकिन अब तक उनकी धान की तौल नहीं हो सकी। मजबूरी में किसान वहीं सोने को मजबूर हैं। रात में गिरते तापमान और कोहरे के कारण बीमार पड़ने का भी खतरा बढ़ गया है।
महिलाएं और बुजुर्ग किसान भी परेशान
धान बेचने आए किसानों में महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल हैं। ठंड और अव्यवस्था का असर उनकी सेहत पर साफ दिखाई दे रहा है। किसानों का कहना है कि अगर यही हालात रहे तो उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।
प्रशासनिक दावे फेल
सरकार द्वारा हर साल धान खरीदी को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन रीवा के खरीद केंद्रों की स्थिति उन दावों की पोल खोल रही है। किसानों ने मांग की है कि
खरीदी प्रक्रिया तेज की जाए
अतिरिक्त कर्मचारियों की तैनाती हो
ठहरने, हीटर/अलाव और शेड की व्यवस्था की जाए
किसानों में आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी
अगर जल्द व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ तो किसानों ने खरीद केंद्रों पर प्रदर्शन और आंदोलन की चेतावनी दी है। उनका कहना है कि सरकार अन्नदाता की समस्याओं को नजरअंदाज कर रही है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।

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