मिनर्वा – द मेडिकल माफिया : डॉक्टरों की लापरवाही और लालच ने छीनी तीन माह के मासूम की सांसें
Minerva - Medical Mafia Rewa: स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर चल रहे मुनाफे के खेल का एक दर्दनाक चेहरा एक बार फिर सामने आया है।
रीवा जिले के प्रसिद्ध निजी अस्पताल मिनर्वा हॉस्पिटल पर आरोप है कि डॉक्टरों की लापरवाही और अवैध वसूली के चलते तीन माह के मासूम की मौत हो गई। परिवार का कहना है कि अस्पताल ने इलाज के नाम पर लाखों रुपये वसूलने के बाद भी बच्चे को बचाने की ईमानदार कोशिश नहीं की। यह घटना पूरे शहर में गुस्से और आक्रोश का विषय बन गई है।
पीड़ित परिवार के मुताबिक, बच्चे की तबीयत अचानक बिगड़ने पर उसे मिनर्वा हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। शुरुआती जांच के दौरान डॉक्टरों ने बच्चे को गंभीर स्थिति बताकर आईसीयू में भर्ती करने की सलाह दी। परिजनों का कहना है कि डॉक्टरों ने हर घंटे के हिसाब से भारी रकम की मांग शुरू कर दी। इलाज के नाम पर बार-बार दवाइयाँ बदल दी गईं, लेकिन बच्चे की हालत में कोई सुधार नहीं आया। जब परिजनों ने सवाल उठाया तो डॉक्टरों ने बदतमीजी करते हुए कहा कि “इलाज चल रहा है, बीच में दखल मत दो।”
करीब दो दिन तक आईसीयू में रखे जाने के बाद अचानक अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि बच्चे की स्थिति गंभीर है और उसे बचाया नहीं जा सका। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों की जिद और गैरजिम्मेदारी के चलते समय पर सही इलाज नहीं मिला। उन्होंने कहा कि यदि समय रहते सही विशेषज्ञ बुलाया जाता तो बच्चे की जान बच सकती थी।
इस घटना के बाद परिवार ने अस्पताल प्रबंधन और जिम्मेदार डॉक्टरों पर कार्रवाई की मांग की है। पीड़ित पिता का कहना है कि “हमने अपनी हर जमा पूंजी इलाज में लगा दी, लेकिन यहां इंसानियत नहीं, सिर्फ पैसों का खेल चलता है। डॉक्टरों ने हमारे मासूम को कमाई का जरिया समझ लिया।”
स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने भी इस घटना पर नाराजगी जताई है। उन्होंने इसे “मिनर्वा – द मेडिकल माफिया” का उदाहरण बताया और प्रशासन से अस्पताल की जांच कराने की मांग की। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अस्पताल की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल उठाए हैं, वहीं शहर में इस घटना को लेकर चर्चा गर्म है।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने मामले की जांच कराने की बात कही है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि “यदि अस्पताल ने किसी प्रकार की अनियमितता की है, तो सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
यह मामला सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों की मनमानी और स्वास्थ्य सेवाओं के व्यवसायीकरण का दर्दनाक उदाहरण है। जहां जीवन बचाने की जगह, इलाज को व्यापार बना दिया गया है। सवाल यह है कि आखिर कब तक ऐसे ‘मेडिकल माफिया’ लोगों की जान से खेलते रहेंगे, और कब इस पर लगाम लगेगी?
