माइनर नहर की जमीनों पर माफियाओं का कब्जा… करोड़ों का खेल… शासन–प्रशासन बना दर्शक!
शहर के आसपास के गांव आजकल भू-माफियाओं की नई प्रयोगशाला बन चुके हैं। माइनर नहर, चरनोई, खरकौनी और सरकारी जमीनों पर ऐसा.
Fri, 12 Dec 2025
कब्ज़ा हो रहा है जैसे यह किसी की निजी पैतृक संपत्ति हो। सबसे चौंकाने वाली बात — इस पूरे खेल में प्रॉपर्टी डीलरों से लेकर विभागीय अधिकारियों तक सबकी “सांठगांठ” खुलकर सामने आ रही है।
करोड़ों का खेल, सबको हिस्सा — सबका राज, सबकी मौन स्वीकृति!
सूत्र बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में नहर और सरकारी जमीनों को प्रॉपर्टी डीलर पहले कब्जा करते हैं, फिर वहीं अवैध प्लॉटिंग कर लाखों-करोड़ों में बेचते हैं।
न रजिस्ट्रेशन
न वैध दस्तावेज
न कोई स्वीकृत लेआउट
ताज़ा ट्रेंड यह है कि 8–10 लोगों का एक छोटा गिरोह लाख रुपए जुटाकर करोड़ों की जमीनों पर एग्रीमेंट कर देता है और फिर शुरू हो जाती है अवैध कॉलोनी की प्लॉटिंग।
विभागीय मिलीभगत का खेल
किसानों और ग्रामीणों का आरोप है कि इस माफिया तंत्र को सबसे बड़ी ताकत मिलती है—
पटवारियों
तहसीलदारों
राजस्व अमले
स्थानीय पुलिस
से।
कई पटवारी तो अपने “मलाईदार हल्के” में पदस्थापना तक खरीदते हैं, ताकि बड़े डीलरों के अवैध कब्जों को वैधता की चादर ओढ़ाई जा सके।
किसान हुए बेबस, माफिया बने सर्वशक्तिमान
XUV में घूमने वाले ये प्रॉपर्टी डीलर आज गांवों में सरकारी अफसर से ज्यादा ताकतवर माने जाते हैं।
किसान अगर सौदा करने से इंकार कर दे तो…
जमीन कम करवाने की धमकी
नक्शा बदलवाने का दबाव
पुलिस की नोटिस
राजस्व अधिकारियों की कार्यवाही
जैसी रणनीतियों के जरिए उन्हें बेचने पर मजबूर किया जाता है।
‘गजब के नुमाइंदे’ — हर स्तर पर माफिया के आदमी
प्रॉपर्टी डीलर अपने गिरोह में ऐसे लोग रखते हैं जिनके इशारे पर—
फाइलें पास होती हैं
नक्शे स्वीकृत होते हैं
सीमांकन पलट दिया जाता है
कब्जा वैध घोषित हो जाता है
जमीन खरीदने वालों की हालत ऐसी कि न कोई सुविधा, न वैधता और न भविष्य सुरक्षित
बस एक नरकीय जिंदगी।
बड़ा सवाल — क्या शासन-प्रशासन सच में अनजान है?
रीवा में नहर-जमीनों से करोड़ों का यह भू-माफिया खेल खुलेआम चल रहा है।
सबकी आंखों के सामने…
शासन के नाक के नीचे…
लेकिन कार्रवाई कहीं नहीं!
क्या प्रशासन इस सबसे अनजान है, या फिर सब ‘सेटिंग’ की आग में पिघल चुके हैं?
