Organic Wheat Farming: रासायनिक खाद से छुटकारा, जैविक गेहूं से किसानों को होगा बड़ा फायदा

जैविक गेहूं की खेती से किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। जानें बुवाई, खाद, सिंचाई और पैदावार की पूरी जानकारी।

 
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भारत में गेहूं प्रमुख खाद्यान्न फसल है और बदलते समय के साथ किसान अब रासायनिक खेती के बजाय जैविक खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। जैविक गेहूं न केवल स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखते हुए किसानों को बेहतर दाम भी दिलाता है। सरकार और बाजार दोनों स्तर पर जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे में आइए जानते हैं कि गेहूं की जैविक खेती कैसे की जाए, ताकि कम लागत में अच्छी पैदावार और मुनाफा मिल सके।

जैविक गेहूं खेती क्या है
जैविक खेती में रासायनिक खाद, कीटनाशक और खरपतवारनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट, हरी खाद, जीवामृत, घनजीवामृत, नीम आधारित उत्पाद और जैविक कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। इससे मिट्टी की सेहत सुधरती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है।
जलवायु और मिट्टी का चयन
गेहूं की जैविक खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है।
तापमान: 20–25 डिग्री सेल्सियस
मिट्टी: दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है
pH मान: 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए
खेत की मिट्टी में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि पानी भराव से फसल को नुकसान हो सकता है।
खेत की तैयारी
जैविक खेती में खेत की तैयारी सबसे अहम चरण है।
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें।
इसके बाद 2–3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करें।
अंतिम जुताई के समय प्रति एकड़ 8–10 टन सड़ी हुई गोबर खाद या 2–3 टन वर्मी कंपोस्ट डालें।
खेत को समतल कर पाटा लगाएं ताकि नमी बनी रहे।
बीज का चयन और बीज उपचार
जैविक खेती के लिए देशी या प्रमाणित जैविक बीज का चयन करें।
प्रमुख जैविक गेहूं किस्में:
लोकवन
शरबती
HI-1531
GW-273
बीज उपचार (रासायनिक दवा के बिना):
10 लीटर पानी में 5 लीटर गोमूत्र और 50 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाकर बीज को 8–10 घंटे भिगोएं।
सुखाकर बुवाई करें। इससे बीजजनित रोगों से बचाव होता है।
बुवाई का सही समय और विधि
बुवाई का समय: अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के मध्य तक
बीज मात्रा: 40–45 किलोग्राम प्रति एकड़
कतार से कतार दूरी: 20–22 सेमी
लाइन से बुवाई करने पर पौधों का विकास अच्छा होता है और निराई-गुड़ाई में आसानी रहती है।
पोषण प्रबंधन (खाद प्रबंधन)
जैविक गेहूं में पोषण के लिए प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग किया जाता है।
बुवाई के 20–25 दिन बाद जीवामृत का छिड़काव या सिंचाई के साथ प्रयोग करें।
40–45 दिन पर घनजीवामृत या वर्मीवाश का प्रयोग करें।
हरी खाद (ढैंचा, सनई) को खेत में मिलाने से नाइट्रोजन की पूर्ति होती है।
खरपतवार नियंत्रण
जैविक खेती में खरपतवार नियंत्रण चुनौतीपूर्ण होता है।
पहली निराई-गुड़ाई 20–25 दिन बाद करें।
दूसरी निराई 40–45 दिन पर करें।
मल्चिंग (फसल अवशेष ढकना) से खरपतवार कम उगते हैं।
रोग और कीट प्रबंधन
जैविक खेती में रासायनिक कीटनाशक की जगह घरेलू व जैविक उपाय अपनाएं।
नीमास्त्र या नीम तेल (3–5 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव।
माहू और सुंडी के लिए लहसुन- मिर्च घोल उपयोगी है।
रोगों से बचाव के लिए छाछ या गोमूत्र का छिड़काव करें।
सिंचाई प्रबंधन
गेहूं की फसल में 4–5 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
पहली सिंचाई: 20–25 दिन (CRI अवस्था)
दूसरी: कल्ले निकलते समय
तीसरी: बालियां निकलते समय
चौथी: दाना भरते समय
संतुलित सिंचाई से उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बढ़ती हैं।
कटाई और उत्पादन
फसल पकने पर जब बालियां सुनहरी हो जाएं और दाने कठोर हो जाएं, तब कटाई करें।
जैविक गेहूं की औसत पैदावार 18–22 क्विंटल प्रति एकड़ तक हो सकती है। सही प्रबंधन से उत्पादन और बढ़ाया जा सकता है।
जैविक गेहूं की बिक्री और मुनाफा
जैविक गेहूं की बाजार में कीमत सामान्य गेहूं से 20–40% अधिक मिलती है।
स्थानीय जैविक मंडी
एफपीओ
सीधे उपभोक्ता को बिक्री
सरकारी जैविक योजनाएं
इन माध्यमों से किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

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